अजनबी हूँ आज, कल अपना लगूं,
रफ़्ता-रफ़्ता क्या पता अच्छा लगूं.
रेत जितनी प्यास लेकर तुम छुओ,
हूँ तो सहरा पर तुम्हें दरिया लगूं.
सल्तनत अहसास की तुमको मिले,
मैं तुम्हें जागीर का हिस्सा लगूं.
बंद करके आँख जब देखो मुझे,
तब सुबह देखा हुआ सपना लगूं.
गर मुझे महसूस दिल से कर सको,
प्यार का बहता हुआ झरना लगूं.
प्यास में मेरी अजब तासीर है,
मैं समंदर हूँ मगर प्यासा लगूं.
मुझको खोकर ज़िंदगी में जब मिलो,
क्या पता तुमको मैं तब कैसा लगूं.
Written By :- J N Mayyaat
रफ़्ता-रफ़्ता क्या पता अच्छा लगूं.
रेत जितनी प्यास लेकर तुम छुओ,
हूँ तो सहरा पर तुम्हें दरिया लगूं.
सल्तनत अहसास की तुमको मिले,
मैं तुम्हें जागीर का हिस्सा लगूं.
बंद करके आँख जब देखो मुझे,
तब सुबह देखा हुआ सपना लगूं.
गर मुझे महसूस दिल से कर सको,
प्यार का बहता हुआ झरना लगूं.
प्यास में मेरी अजब तासीर है,
मैं समंदर हूँ मगर प्यासा लगूं.
मुझको खोकर ज़िंदगी में जब मिलो,
क्या पता तुमको मैं तब कैसा लगूं.
Written By :- J N Mayyaat