ये सोचना ग़लत है की तुम पर नज़र नहीं
मशरूफ में बोहोत हूँ लेकिन बे खबर नहीं
मशरूफ में बोहोत हूँ लेकिन बे खबर नहीं
माज़ी की राख उठे तो चिंगारियां मिले
बेशक किसी को चाहो पर इस कदर नहीं
बेशक किसी को चाहो पर इस कदर नहीं
ये कैसा दीवानापन है तेरी मोहोब्बत में
इबादत भी है लेकिन सजदे में सर नहीं
इबादत भी है लेकिन सजदे में सर नहीं
ए चाँद बेवफ़ा है वो कैसे करूँ यकीं
दिल ख़ार ख़ार है मय्यात,उसको ख़बर नहीं
दिल ख़ार ख़ार है मय्यात,उसको ख़बर नहीं
Written By :- J N Mayyaat